दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय (Dadabhai Naoroji Biography in Hindi): क्या आप दादभाई नौरोजी के बारे में जानते हैं? हमारे भारत के स्वराज की लड़ाई में उनका किस तरह का योगदान था? बहुत ही कम लोगों को दादभाई नौरोजी के जीवन के बारे में जानकारी होगी.
इसलिए आज यहाँ पर आपको दादाभाई नौरोजी की जीवनी के बारे में कुछ बातें बताई गयी हैं. आप सबके मन में ये सवाल आ रहा होगा की दादाभाई नौरोजी कौन थे? दादाभाई नौरोजी भारतीय स्वतंत्रता अभियान के एक महान राजनितिक नेता थे जिन्हें पुरे भारत में सम्मानपूर्वक “dadabhai naoroji the grand old man of india” कहा जाता है.
नौरोजी भारत के एक ऐसे सर्वमान्य नेता था जिनके आदर्शों और विचारों से प्रभावित होकर देशवासियों ने उन्हें राष्ट्र पितामह का दर्जा दिया. वे ब्रिटिशकालीन भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें अंग्रेजी संसद का सदस्य चुना गया था. दादाभाई एक पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, कपास के व्यापारी तथा आरंभिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता थे.
इन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का रचयिता भी कहा जाता है. वे ब्रिटिश शासन के समर्थक तो थे ही पर स्वराज्य के हिमायती भी थे. उनका कार्य भारतवासियों के लिए महत्वपूर्ण था. तो चलिए जानते है दादाभाई नौरोजी की जीवनी हिंदी में.
दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय (Dadabhai Naoroji Biography in Hindi)
दादभाई नौरोजी का जन्मदिन 4 सितम्बर 1825 को मुंबई में हुआ. उनका जन्म एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था. दादाभाई के पिता का नाम नौरोजी पलांजी डोरदी था तथा माता का नाम मनेखबाई था.

दादाभाई नौरोजी केवल चार साल के थे तभी उनके सर से उनके पिता का साया उठ गया. पिता के देहांत के बाद उनका पालन पोषण उनकी माता द्वारा हुआ जिन्होंने अनपढ़ होने के बावजूद भी यह तय किया की दादाभाई नौरोजी को सबसे अच्छी अंग्रेजी शिक्षा मिले.
दादाभाई के व्यक्तित्व और शिक्षा में इनकी माँ का महत्वपूर्ण योगदान था. दादाभाई का विवाह 11 साल की उम्र में ही 7 साल की गुलबाई से हो गयी थी. उस समय भारत में बाल विवाह का चलन था.
जीवन परिचय बिंदु | दादाभाई जीवन परिचय |
पूरा नाम | दादाभाई नौरोजी |
जन्म | 4 सितम्बर, 1825 |
जन्म स्थान | बॉम्बे, भारत |
माता – पिता | मानेक्बाई – नौरोजी पलंजी दोर्दी |
शिक्षा | एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट, मुंबई |
मृत्यु | 30 जून, 1917 (मुम्बई, महाराष्ट्र) |
पत्नी | गुलबाई |
राजनैतिक पार्टी | लिबरल |
संस्थापक | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
निवास | लन्दन |
दादाभाई नौरोजी की शिक्षा
दादाभाई की शुरुआती शिक्षा “नेटिव एजुकेशन सोसाइटी स्कूल” से हुयी थी. इसके बाद दादाभाई ने ‘एल्फिन्स्टोन इंस्टीट्यूशन’ बॉम्बे से पढाई की. एक छात्र के तौर पर दादाभाई गणित और अंग्रेजी में बहुत अच्छे थे.
शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें वही संसथान में अध्यापक के तौर पर नियुक्त किया गया. नौरोजी मात्र 27 साल की उम्र में गणित और भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक बन गए. कॉलेज में अध्यापक के पद पर सम्मानित होकर 6 वर्षो तक उन्होंने अपनी सेवाएं दीं.
दादाभाई नौरोजी जी का करियर
1853 ईस्वी में उन्होंने बंबई एसोसिएशन की स्थापना की और 1856 में उन्होंने अध्यापक पद से त्याग पत्र दे दिया. उसके बाद दादाभाई ‘कामा एंड कंपनी’ नामक कंपनी में नौकरी करने लगे, यह पेहली भारतीय कंपनी थी जो ब्रिटेन में स्थापित हुई थी.
व्यापारिक कार्य से उन्हें लन्दन जाने का अवसर मिला. लन्दन जाने के बाद काम करने के दौरान उन्हें कंपनी के अनैतिक तरीको के बारे में पता चला जो उन्हें पसंद नहीं आये और उन्होंने इस कंपनी से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद उन्होंने खुद का एक कॉटन ट्रेडिंग कंपनी स्थापित की, जो बाद में “दादाभाई नौरोजी एंड कंपनी” के नाम से जाने जानी लगी.
1860 के दशक की शुरुआत में दादाभाई ने सक्रिय रूप से भारतीयों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया था. वे भारत में ब्रिटिशों की प्रवासिय शासनविधि के सख्त खिलाफ थे.
इन्होने ब्रिटिशों के सामने “ड्रेन थ्योरी” प्रस्तुत की, जिसमे बताया गया था की ब्रिटिश कैसे भारत का शोषण करते हैं, कैसे वो योजनाबद्ध तरीकों से भारत के धन और संसाधनों में कमी ला रहे हैं और देश को गरीब बना रहे हैं. दादाभाई के इस वाक्य ने अंग्रेजों की नींव को हिलाकर रख दिया.
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान- दादाभाई नौरोजी इतिहास
स्वतंत्रता आंदोलन में दादाभाई नौरोजी का महत्वपूर्ण योगदान था. वे ब्रिटिश सरकार की कई नीतियों पर विश्वास भी रखते थे. उनका यह मानना था की ब्रिटिश शासन प्रणाली में सुधार लाकर उसे जनहितकारी बनाया जा सकता है.
वे ऐसे उदारवादी नेता थे, जो हिंसात्मक आंदोलन के विरोधी थे. नौरोजी शांतिपूर्ण तरीकों से स्वतंत्रता के पक्षधर थे. उन्होंने “ईस्ट इंडिया एसोसिएशन” की स्थापना कर भारतियों की सहायता करने और उनकी स्थिति सुधारने हेतु प्रयास किया.
इस संस्था में भारत के उन उच्च अधीकारियों को शामिल किया गया जिनकी पहुँच ब्रिटिश संसद के सदस्यों तक थी. उन्होंने भारतीयों की निर्धनता व अशिक्षा के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेदार बताया.
अँगरेज़ सरकार ने जब उनकी इस बात पर अविश्वास किया, तो दादाभाई नौरोजी की पुस्तक ‘पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रुल इन इंडिया’ लिखी. सन 1885 में मिस्टर ए.के. ह्युम के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी के गठन में योगदान दिया.
1886 के कलकत्ता अधिवेशन के वे अध्यक्ष भी रहे. 1892 में ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य चुन लिए गए. ICS यानि सिविल सेवा की परीक्षा इंग्लैंड और भारत में एक साथ कराने हेतु प्रयास किया. 1893 में कांग्रेस के लाहोर अधिवेस के वे सभापति चुने गए.
1906 में तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने पार्टी में नरमपंथी और गरमपंथी के बिच हो रहे विभाजन को रोका. कांग्रेस की स्वराज की माँग उनके द्वारा 1906 में एक अध्यक्षीय भासन में सार्वजनिक रूप से व्यक्त की गयी थी।
दादा भाई नौरोजी का योगदान
- 1875 में मुंबई महानगरपालिका के सदस्य बने
- 1885 में मुंबई प्रांतीय कायदे मंडल के सदस्य बने
वे पहले भारतीय’ थे जिन्होंने कहा की भारत भारतवासियों का है और भारत को आज़ाद करना है, उनकी बातों से बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और मोहनदास करमचंद गाँधी जी जैसे नेता भी प्रभावित हुए.
दादाभाई ने कहा- “हम दया की भीख नहीं मांगते, हम केवल न्याय चाहते हैं? ब्रिटिश नागरिक के समान अधिकारों का जिक्र नहीं करते, हम स्वशासन चाहते हैं.” नौरोजी के अनुसार विरोध का स्वरुप अहिंसक और संवैधानिक होना चाहिए.
इन्होने इनके भाषण के माध्यम से देश में जागरूकता फैलाई और भारतवासियों के साथ हो रहे अन्याय को रोकने के लिए कदम बढ़ाये. ये महिला और पुरुष को एक समान अधिकार देना चाहते थे.
नौरोजी भारत में महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष रूप से निःशुल्क शिक्षा के लिए जोर देते थे. क्यूंकि उनकी माँ को उन्हें शिक्षा प्रदान करवाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था.
वह भारत में महिलाओं की स्थिति में भी काफी सुधार करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने ज्ञानप्रसारक मंडल, बॉम्बे में एकमात्र लड़कियों के उच्च विध्यालय की नीव रखी.
दादाभाई ने एक अखबार शुरू किया जिसका नाम था “Voice Of India” इसकी मदद से देश के लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया था. 30 जून 1917 को 92 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.
वह एक महान देशभक्त नेता थे. धन्य है हमारे देश की धरती जहाँ ऐसी महपुरुषों ने जन्म लिया जिन्होंने अपने मातृभूमि की लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया.
दादाभाई नौरोजी का उपनाम क्या है और क्यूँ?
दादाभाई नौरोजी को ‘भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन‘ के रूप में भी याद किया जाता है. वह मुख्य रूप से ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अपार योगदान के कारण इस उपाधि से जुड़े थे.
दादाभाई नौरोजी ने न केवल अपने घर की धरती पर आजादी की लड़ाई लड़ी, बल्कि ब्रिटिश अधिकारियों के बीच विशेष रूप से ब्रिटिश संसद में संसद के आधिकारिक सदस्य के रूप में हस्तक्षेप की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
दादाभाई नौरोजी के सम्मान में मुंबई, पाकिस्तान और यहाँ तक की लन्दन में भी कई सड़कों, इमारतों और चोराहों को इनका नाम दिया गया है। इनके जैसे महानपुरुष के संघर्षो और भारत को आज़ाद देश बनाने के पीछे इनके अनगिनत योगदान के वजह से आज हम आजादी की साँस ले रहे हैं.
दादाभाई नौरोजी की मृत्यु कब हुई थी?
दादाभाई नौरोजी की मृत्यु 30 जून सन 1917 को हुई थी।
दादा भाई नौरोजी के माता पिता का क्या नाम था?
दादा भाई नौरोजी के पिता का नाम Naoroji Palanji Dordi और माता का नाम माणकबाई नौरोजी दोर्डी था।
दादाभाई नौरोजी का उपनाम क्या है?
दादाभाई नौरोजी का उपनाम ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ (Grand Old Man of India) कहा जाता है।
आज आपने क्या सीखा
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