परोपकार पर निबंध: जीवन में परोपकार का महत्व

0

परोपकार पर निबंध (Essay on Charity in Hindi): हमारे बड़े बुजुर्ग और माता पिता बचपन से ही हमें ये सिखाते आ रहे हैं की गरीबों और जरुरतमंदो की हमें मदद करनी चाहिए. हमारे भारतीय संस्कार में ही दुसरे की सहायत करने का गुण बसा हुआ है.

सहायता करने का ये मतलब नहीं है की जब आप उस काबिल हो जायेंगे तभी आप दुसरो की सहायत करेंगे, जो अपने स्वार्थ के बारे में ना सोच कर दुसरे के खुसी के लिए जरुरतमंदो का मदद करता है वही सच्चा मनुष्य होता है और इसी गुण को परोपकार कहते हैं.

ये सारी बातें तो आप अपनी दादा-दादी और नाना-नानी से बचपन से ही सुनते आ रहे होंगे क्योंकि उनके ज़माने में परोपकार का मतलब ही पुण्य हुआ करता था लेकिन आज के ज़माने में आपको कहीं किसी व्यक्ति में ऐसा गुण देखने को मिलता है? मिलता है परन्तु बहुत ही कम.

ऐसा नहीं है की परोपकारी मनुष्य इस दुनिया में नहीं है, बिलकुल हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत ही कम है. ऐसा क्यों है? क्या इस धरती के मनुष्य के अंदर इंसानियत खत्म हो गयी है? इसका जवाब है बिलकुल नहीं, हर मनुष्य के अन्दर कुछ अच्छाई और बुराई होती है.

ये अच्छाई वाला गुण ही परोपकार का रूप है लेकिन पिछले कुछ दशक से मनुष्यों के अच्छाइयों वाला गुण कम और बुराइयों वाला गुण ज्यादा देखने को मिल रहा है.

हमारे बच्चे भी बचपन से बुराइयों वाला गुण देखते हुए बड़े हो रहे तो आप खुद ही सोचिये की वो हमसे और बाहर का मंजर देखकर क्या सीखेंगे. बड़ों से ही तो सीखते हैं बच्चे.

अगर हम उनके सामने अच्छे अच्छे काम करेंगे, गरीबों की मदद करेंगे, भूखों को भोजन कराएँगे और परोपकार का महत्व क्या है ये बताएँगे तो यक़ीनन आगे आने वाली पीढ़ी इंसानियत की एक मिशल बनेगी. इस काम में मै आपकी सहायता करने के लिए यहाँ पर परोपकार पर निबंध पेश कर रही हूँ जिसके मदद से आप अपने बच्चों को बेहतर इंसान बना सकते हैं.

परोपकार पर निबंध – Essay on Charity in Hindi

Paropkar Par Nibandh Hindi

परोपकार शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है; पर+उपकार जिसका अर्थ है निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना. मनुष्य के लिए परोपकार सबसे बड़ा धर्म है. परोपकार के समान कोई धर्म नहीं. परोपकार किसे कहते हैं? बिना अपने स्वार्थ के बारे में परवाह किये व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के बारे में सोचता है और दूसरों के लिए कार्य करता है उसे ही परोपकार कहते हैं.

ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य जिव मनुष्य बनाया है. मनुष्य धरती का केवल एक मात्र प्राणी है जिसके अन्दर दूसरों के लिए भलाई करने का भाव होता है. इस भाव की उत्पत्ति करुणा और प्रेम से होती है. अगर यही भाव मनुष्य के अन्दर ख़त्म हो जायेगा तो संसार का भविष्य अंधकार में डूब जायेगा.

परोपकार से ही मनुष्यत्व और पशुत्व में भेद समझा जा सकता है. मनुष्य एक समझदार सामाजिक प्राणी है. वह प्रत्येक स्थिति में अपना या किसी अन्य का भला कर सकता है, जबकि पशु ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता है. परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृति का होता है.

एक कहावत है: दान घर से शुरू होता है. ’एक व्यक्ति, जो दिल से दयालु होता है और समाज में कमजोर और जरूरतमंदों के प्रति अपने शुरुआती दिनों से दया रखता है, आमतौर पर गरीबों की मदद करने और उन्हें उपहार देने के लिए पाया जाता है.

वह एक भिखारी को भिक्षा देने में खुशी और संतुष्टि पाता है, या जरूरतमंद व्यक्तियों को कुछ वित्तीय राहत प्रदान करता है जो उसके आस पास पाए जाते हैं. दान, मनुष्य में एक महान गुण और समाज में कल्याण लाता है। यह मानवीय दिलों को बढ़ाता है और लोगों में भाईचारे और प्रेम का संदेश फैलाता है.

परोपकार कोई दिखावा नहीं है, इसका मतलब है कि आपको अपने दिल की गहराईयों से  जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए. किसी भी स्वार्थी उद्देश्यों से मुक्त एक चैरिटी शब्द का सही अर्थ दान है.

परोपकार ऐसा गुण है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है. यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाये तो वह भी सारे गिले शिकवे भूल कर सच्चा मित्र बन जाता है. परोपकार मनुष्य का कर्तव्य है.

जो परोपकार करता है वह सारे पुण्य कर्म करता है. परोपकारी मनुष्य के मन में स्वार्थ-भावना नहीं होनी चाहिए. अपने सामर्थ्य अनुसार जरुरतमंद लोगों की सहायता करना दुनिया के सबसे महानतम कार्यों में से एक है.

हम में से अधिक लोग परोपकार का मतलब सिर्फ इसे गरीबों को पैसे देने के रूप में समझते हैं लेकिन परोपकार का अर्थ इससे बहुत गहरा है. मनुष्य को जो सुख का अनुभव निर्वस्त्र को वस्त्र देने में, भूखे को रोटी देने में, किसी व्यक्ति के दुःख को दूर करने में और बेसहारा को सहारा देने में होता है, वह किसी और काम को करने से नहीं होता. जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीता है उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है.

परोपकार कैसे किया जाता है? परोपकार के अनेक रूप हैं जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों की सहायता कर आत्मिक आनंद प्राप्त करता है जैसे- प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में अपना स्थान देना.

अंधों को सड़क पार करवाना, असिक्षित को शिक्षित करवाना, भूखे को रोटी देना, वृक्ष लगाना, धर्मशाला में दान दक्षिणा देना ये सभी परोपकार के रूप हैं. परोपकार की भावना चाहे देश के प्रति हो या किसी व्यक्ति के प्रति, वह मानवता है.

परोपकार से लाभ

परोपकार एक ऐसा गुण है जो हर व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए. परोपकार के बहुत से लाभ हैं जो एक व्यक्ति को बेहतर इंसान बनाने का कार्य करता है. परोपकार के लिए किया गया प्रत्येक कार्य जो आप करते हैं, वो आपको एक बेहतर इंसान बनाता है.

जो सेवा बिना स्वार्थ के की जाती है वह लोकप्रियता प्रदान करती है. परोपकार करने वाले व्यक्ति पुरे समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध होता है और उसके द्वारा किये गए उपकारों को मनुष्य अपने पुरे जीवन काल में याद रखता है.

समाज में सुधार लाने के लिए परोपकार मुख्य हथियार का काम करता है. जब हम परोपकार की भावना के साथ काम करते हैं, तो हम खुदको ईश्वर के समीप पाते हैं और समाज में हो रहे अत्याचार को भी कम करने में सक्षम हो जाते हैं. परोपकार करने से मन और आत्मा दोनों को बहुत शांति मिलती है.

समाज में परोपकार की आव्यश्कता जरुरी है. जिस समाज में दुसरो की सहायत करने की भावना जितनी अधिक होती है, वह समाज उतना ही सुखी होता है. संसार में ऐसे मनुष्यों का नाम अमर हो जाते हैं जो अपना जीवन दूसरों के हित के लिए जीते हैं. परोपकार के द्वारा मनुष्यों में भाईचारे की वृद्धि होती है और सभी प्रकार के लड़ाई झगड़ें समाप्त होते हैं.

परोपकार का महत्व

जीवन में परोपकार का महत्व बहुत बड़ा है. परोपकार मानव समाज का आधार होता है. हर व्यक्ति का धर्म होना चहिये की वह एक परोपकारी बने. दूसरों के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाए. जिस इंसान में परोपकार की भावना नहीं है वह मनुष्य कहलाने के योग्य नहीं होता है. केवल अपनी दुःख की चिंता करना मानवता नहीं पशुता है.

परोपकार से ही मानव उन्नति और सुख समृद्धि प्राप्त कर सकता है. परोपकार करने वाले के मन में यह भावना होनी चाहिए की वह दूसरों की सहायत कर अपने कर्त्तव्य को पूरा कर रहा है. इस भावना से उसके मन और आत्मा को जो शांति और संतोष मिलेगा, वह लाखों रुपये खर्च करके बड़े बड़े पद और सम्मान पाकर भी प्राप्त नहीं होगा.

परोपकार की भावना मनुष्य में ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों, वृक्षों और नदियों में भी पायी जाती है. प्रकृति का स्वभाव भी परोपकारी होता है. प्रकृति के प्रत्येक कार्य में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई पड़ती है.

बादल बारिश का जल स्वयं नहीं पिते बल्कि धरती की प्यास बुझाते हैं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते दूसरों के लिए अर्पण करते हैं, नदियाँ भी निस्वार्थ बहती हैं. इसी प्रकार सूर्य का प्रकाश भी सबके लिए है, चन्द्रमा अपनी शीतलता सबको देता है, फुल भी अपनी सुगंध से सबको आनंदित करते हैं.

प्रकृति मनुष्य को यह महान सन्देश देता है- जिस प्रकार से पेड़ पौधे तथा प्रकृति भी हमें हमारे जीवन को कुशल मंगल बनाने के लिए हमारी सभी संभव प्रकार से सहायता करते हैं और बदले में हमसे कोई भी चीज या वास्तु की अपेक्षा नहीं करते हैं ठीक उसी तरह हम मनुष्यों को भी किसी की सहायत करने के बदले किसी भी चीज की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए. परोपकार को इतना महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि इससे मनुष्य की पहचान होती है.

परोपकार पर आधारित कहानी– प्राचीन इतिहास से हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिनसे ज्ञात होता है की किस तरह मनुष्य ने परोपकार के लिए अपनी धन-संपत्ति तो क्या अपने शरीर तक को अर्पित कर दिया था. महर्षि दधिची ने राक्षसों के विनाश के लिए अपनी हड्डियाँ देवताओं को दे दी थीं.

राजा शिवी ने कबूतर की रक्षा के लिए बाज को अपने शारीर से मांस का टुकड़ा काटकर दे दिया था. गुरु गोविन्द सिंह हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने बच्चों सहित बलिदान हो गए थे. लोकहित के लिए ईसामसीह सूली पर चढ़ गए थे. महात्मा गांधी ने देश के लिए अपने सीने पर गोलियां खायी थीं.

राजा रंतिदेव को चालीस दिन तक भूखे रहने के बाद जब भोजन मिला तो उन्होंने वह भोजन शरण में आये भूखे अतिथि को दे दिया था.

भारत जैसे सांस्कृतिक देश में ऐसे अनेक महावीर है जो परोपकार तथा जन कल्याण के लिए अपनी जीवन का बलिदान तक दे दिया था. जब पूरा देश स्वाधीनता संग्राम की आग में जल रहा था तब महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, मौलाना आज़ाद, सरदार भगत सिंह जैसे कई क्रन्तिकारी लोग देश के लिए मर मिटने को तैयार थे.

अनेक योद्धाओं ने हंसते-हंसते गोलियों का स्वागत किया, फाँसी के फंदे पर चढ़ गए. परोपकार की कहानी और यह बलिदान हमें बताता है की ऐसे महान लोग दूसरों के लिए कितना चिंतित थे. उस समय लोग अपने लिए नहीं बल्कि पराये जन के लिए जी रहे थे.

ऐसे लोग जीवन का असली सुख और आनंद प्राप्त करते हैं. वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो दूसरों के सुख के लिए जान दे सके.

परोपकार ही जीवन है, एक मनुष्य तभी परोपकारी हो सकता है जब वो दूसरों की भलाई को अपनी निजी हितों से ऊपर देखे. अगर हम चाहें तो अपने जीवन के हर एक क्षण को परोपकार में लगा सकते हैं.

विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है की मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते हैं. इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है. परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है. मानव की सेवा ईश्वर की सेवा है.

हम भी छोटे छोटे कार्य करके अनेक प्रकार से परोपकार कर सकते हैं. परोपकार से आत्मा और मन दोनों को ही शांति मिलती है. मुझे उम्मीद है की आपको ये लेख “परोपकार पर निबंध (Essay on Charity in Hindi)” पसंद आएगा और इस लेख से परोपकार की जानकारी भी आपको मिली होगी. अगर आपको ये लेख अच्छा लगा तो इसे सभी के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करिए और कोई सुझाव हों तो निचे कमेंट करिए.

Previous articleरक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है ग्रंथों के अनुसार
Next articleप्रकृति एक माँ पर निबंध
मैं एक कहानी लेखिका हूँ, जो अपनी विचारधारा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने में विश्वास रखती हूँ। मेरी कहानियां जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here