श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध

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जन्माष्टमी पर निबंध: श्री कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र और लोकप्रिय पर्व है. इस पर्व को विश्व में पुरे जोश और हर्षोऊलास के साथ मनाया जाता है. जन्माष्टमी श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है.

हिन्दू धर्म के अनुसार लोगों का मानना है की श्री कृष्ण जी भगवान् विष्णु के अवतार के रूप में लोगों के दुःख दर्द को दूर करने के लिए धरती में मानव रूप धारण कर मथुरा में जन्म लिए थे.

जन्माष्टमी का त्यौहार हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो हिन्दू कैलेंडर की हिसाब से हर साल अगस्त या सितम्बर के महीने में पड़ता है. श्री कृष्णा का अवतार अज्ञानता पर रौशनी और बुराई के अंत का प्रतिक है.

कृष्ण जी का आकाश सामान नीला रूप भगवान के असीम क्षमता और शक्ति को दर्शाता है. उनके तन का पिला वस्त्र धरती के रंग रूप का वर्णन प्रकट करता है. एक शुद्ध, अनंत चेतना का रूप लेकर कृष्ण जी का धरती पर जन्म हुआ था जिसने बुराईयों का विनाश किया और अच्छाई को पुनर्जीवित किया.

कृष्ण के बाँसुरी से निकलते मनमोहक मधुर आवाज़ दिव्य शक्ति का प्रतिक है जो लोगों के पीड़ा को हर लेता है. जन्माष्टमी पर्व की तैयारियाँ घरों और मंदिरों में कुछ दिन पहले से ही जोर शोर से शुरू हो जाती है. लोग अपने बच्चों को राधा कृष्ण के रूप में सजाकर रास लीला के नाटक में हिस्सा लेते हैं और मंदिरों के दर्शन करने जाते हैं.

जन्माष्टमी के दिन हर कोई भगवान के दर्शन करने के लिए उनकी जन्म भूमि मथुरा में आता है, दूर दूर से भक्तजन माथा टेकने आते हैं और अपने मंगलमय जीवन की कामना करते हैं. हमें अपने बच्चों को जन्माष्टमी और कृष्णा की कहानी बताकर उन्हें इस पवित्र पर्व का महत्व बताना चाहिए.

इसलिए आपके इस कार्य में सहायता करने के लिए मैंने यहाँ जन्माष्टमी का निबंध हिंदी में प्रस्तुत किया है, इसे आप अपने बच्चों के साथ बाँट सकते हैं और ये बच्चों के स्कूल के कार्य में भी काफी मददगार साबित होगा.

जन्माष्टमी पर निबंध हिंदी में (Essay on Janmastami in Hindi)

Shri Krishna Janmashtami Par Nibandh

श्री कृष्ण जी जिन्हें हम प्रेम से गोविंद, बालगोपाल, कान्हा, लड्डू गोपाल, माखन चोर और 108 अनेकों नाम से पुकारते हैं उनका जन्म 5 हजार साल पहले मथुरा के एक कारागार में हुआ था. कृष्ण जी देवकी और वासुदेव के पुत्र थे लेकिन उनका पालन पोषण यशोदा मैया और नन्द जी के द्वारा हुआ था.

हिन्दू धर्म के अनुसार कृष्ण जी देवता विष्णु के आठवें अवतार थे जिन्होंने मानव रूप लेकर हमारे धरती पर जन्म लिया था. उनका जन्म पृथ्वी पर एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था. भगवान कृष्ण का जन्म दुनिया को बुराई से मुक्त करने के लिए हुआ था.

परिणामस्वरूप, उन्होंने महाभारत की पुस्तक में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. साथ ही, भगवान कृष्ण ने अच्छे कर्म और भक्ति के सिद्धांत के बारे में प्रचार किया.

जन्माष्टमी वाले दिन मथुरा वासियों के लिए बहुत ही ख़ास रहता है क्यूंकि मथुरा में ही भगवन कृष्ण का जन्म हुआ था. वहां पूर्ण भक्ति, आनंद और समर्पण के साथ लोग जन्माष्टमी का जश्न मनाते हैं.

भारत शुरू से ही देवी देवताओं की भूमि मानी जाती है जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा त्यौहार भारत में ही मनाया जाता है और हर त्यौहार के पीछे देवी देवताओं के कोई ना कोई पौराणिक कथाएँ जुडी होती हैं.

ये कथा हर धर्म के पुराण में पाये जाते हैं जो गुरु, शिक्षक और माता पिता द्वारा हम तक पहुँचते हैं. उनके जन्म से भी जुडी कृष्ण भगवान की कथा है जो उनके द्वारा किये गए कार्यों को उजागर करती है.

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा

मथुरा में एक राजा था कंस जो अपने राज्य के लोगों पर अत्याचार करता था. उसकी सबसे प्रिय एक बहन थी जिसका नाम देवकी था. देवकी का विवाह कंस के मित्र वासुदेव के साथ हुआ. कंस देवकी से बहुत प्रेम करता था इतना की विवाह के पश्चात उसने अपनी बहन को स्वयं ससुराल छोड़ने जा रहा था.

तभी आकाशवाणी हुई की कंस का वध देवकी और वासुदेव का आठवां संतान करेगा. इतना सुनते ही कंस ने अपनी बहन का ससुराल जाने वाला रथ वापस मोड़ लिया और देवकी को मारना चाहा लेकिन वासुदेव के समझाने पर उसने देवकी को छोड़ दिया.

वासुदेव ने कंस से कहा जब उनकी आठवी पुत्र जन्म लेगी तो वो उसे अपने हाथों से कंस को सौंप देंगे. वासुदेव की बात सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया.

देवकी का जब भी कोई संतान होता तो कंस उस शिशु का तुरंत हत्या कर देता. इसी तरह से उसने देवकी के सात संतानों की हत्या करने का पाप कर चूका था.

कंस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था, लोगों को उससे बचाने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लिया.

आख़िरकार श्री कृष्ण का जन्म हुआ और स्वयं भगवान विष्णु देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट हुए. उन्होंने वासुदेव से कहा की जो आप की आठवीं संतान हुई है वह मैं हूँ और उनके पुत्र की सुरक्षा के लिए उन्होंने वासुदेव के मित्र नन्द जी के घर वृंदावन में छोड़ आने को कहा.

नन्द जी के यहाँ उसी दिन एक पुत्री जन्मी थी. वासुदेव ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और वो बालक को नन्द जी के यहाँ लेकर जाने लगे.

उस दिन बहुत ही भयंकर वर्षा हो रही थी, जब वासुदेव नन्हे कृष्ण को एक टोकरे में ले जाने लगे तब उनके शारीर से बंधी जंजीर अपने आप की खुल गई और कारागार के दरवाजे भी अपने आप खुल गए. उन्हें वहां रोकने वाला कोई नहीं था क्योंकि भगवान की लीला से वहां के सारे सिपाही गहरी निंद्रा में सो गए थे.

जब वासुदेव नदी पार कर रहे थे तब नदी भी छोटी हो गई और उन्हें रास्ता देने लगी. इस तरह वासुदेव कृष्ण जी को लेकर अपने मित्र नन्द जी के यहाँ पहुँच गए और उनकी सुपुत्री के जगह अपने बालक को पालने में बदलकर रख दिया. वासुदेव उस नन्ही सी बालिका को अपने साथ कारागार में वापस ले गए.

जब कंस को यह बात पता चली की देवकी की आठवीं संतान ने जन्म ले लिया है तब उसे मारने वह कारागार पहुँच गया. जैसे ही कंश कन्या को मारने वाला होता है तभी वो कन्या अपने असली रूप में आ जाती है. वो कन्या एक देवी रहती है जो कंस को बताती है की तुझे मारने वाला बालक सुरक्षित वृंदावन पहुँच गया है और उसके हाथों तेरा विनाश निश्चित है.

इतना कहकर वो देवी अदृश्य हो जाती है. कंस यह सुनकर भयभीत हो जाता है और कृष्ण को मारने के लिए अनेक प्रयास करता है. लेकिन वह अपने हर प्रयास में विफल हो जाता है आखिर वो समय आता है जब कंस कृष्ण के हाथों मारा जाता है और उसके अत्याचार से कृष्ण के माता पिता और नगरवासी मुक्त हो जाते हैं.

इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर बुराई पर अच्छाई की जित का संकेत लोगों को दिया. इसलिए भगवन कृष्ण के जन्मदिन को हिन्दू धर्म के लोग कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं. हिन्दू मान्यता के अनुसार कृष्ण का जन्म वासुदेव तथा देवकी के पुत्र के रूप में मथुरा के असुर राजा कंस का अंत करने के लिए ही हुआ था.

जन्माष्टमी 2020 में कब है?

यूँ तो जन्माष्टमी हर साल अगस्त या सितम्बर के महीने में मनाई जाती है. लेकिन फिर भी सावन का महिना आते ही हम सब के मन में बस एक ही सवाल आता है की जन्माष्टमी कब है? और जन्माष्टमी कब और किस दिन है?

 बच्चे भी बड़े उत्साह से पूछते हैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज है या कल, जन्माष्टमी आज की है क्या और क्या जन्माष्टमी आज है?  तो हम आपको बता दें की इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 2020 में 11 अगस्त मंगलवार को मनाई जाएगी.

श्री कृष्ण जी का जन्म रात के 12 बजे हुआ था, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में पड़ती है. जन्माष्टमी उत्सव को पूरी दुनिया में बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस पावन अवसर पर प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु भगवान कृष्ण का दर्शन करने के लिए मथुरा जाते हैं.

जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी, कृष्णस्थमी, श्रीजयंती के नाम से भी जाना जाता है. जन्माष्टमी महाराष्ट्र में दही हांडी के लिए प्रसिद्ध है.

कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाते हैं?

जन्माष्टमी 2020 में 11 अगस्त को पुरे विश्व में धूम धाम से मनाई जाएगी. यह पर्व भगवान कृष्ण पर हमारी आस्था का प्रतिक है. जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियाँ जोर-शोर से आरंभ हो जाती है, पुरे भारत वर्ष में इस त्यौहार का उत्साह देखने योग्य होता है.

जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी के दिन लोग पूरा दिन व्रत रखते हैं और आधी रात 12 बजे कृष्ण का जन्म होने के बाद घंटियाँ बजाकर श्री कृष्ण की जन्माष्टमी आरती की जाती है.

बहुत से लोगो का ये सवाल होता है की कृष्ण जन्माष्टमी में क्या खाना चाहिए? भारत में मनाए जाने वाले अधिकांश त्योहार धार्मिक विश्वासों, अनुष्ठानों और धार्मिक प्रथाओं के आसपास घूमते हैं, जो उपवास और दावत दोनों के लिए होते हैं.

जन्माष्टमी में बहुत से श्रद्धालु निर्जल उपवास करते हैं और रात्रि 12 बजे के पूजन के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं. वहीँ बहुत से भक्त बिना निर्जल उपवास किये भी धान और नमक का त्याग कर व्रत रखते हैं. ऐसे में व्रत में भक्त सेंधा नमक से बने साबूदाने की खिचड़ी, दही वडा, समक चावल के खीर, आलू के पराठे इत्यादि चीजें खा सकते हैं.

जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है. इस दिन मंदिरों में झाकियाँ सजाई जाती है और भगवान श्री कृष्ण को झुला झुलाया जाता है.

जन्माष्टमी का वास्तविक उत्सव मध्यरात्रि के दौरान होता है क्योंकि माना जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म अपने चाचा कंस के शासन और हिंसा को समाप्त करने के लिए अंधेरी, तूफानी और घुमावदार रात में हुआ था. पूरे भारत में इस दिन को भक्ति गीतों और नृत्यों, पूजाओं, आरती, शंख की ध्वनि और बच्चे श्रीकृष्ण की पालकी के साथ मनाया जाता है.

इस दिन कई जगहों पर रासलीला का आयोजन किया जाता है जिसमे कृष्ण लीला का नाटक होता है. देवालयों और धार्मिक स्थानों पर गीता का अखंड पाठ चलता है.

जन्माष्टमी के दिन देश में कई जगहों पर दही-हांडी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जात है. इसमें नन्हे बालकों द्वारा दही से भरी मटकी फोड़ी जाती है. मथुरा और वृंदावन जहाँ श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था वहां की जन्माष्टमी विश्व प्रसिद्द है.

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और क्रीडा स्थली होने के कारण यहाँ के मंदिरों की सजावट, उनमे होने वाली रासलीला एवं कृष्ण-चरित्र-गान बड़े ही सुन्दर होते हैं. देश विदेश से लोग वहां कृष्ण जी के दर्शन करने आते हैं.

इस दिन प्रायः सभी विद्यालयों, संस्थाओं आदि में जन्माष्टमी अवकाश रहता है. दिन भर अलग अलग जगहों पर विद्वानों के प्रवचन, श्रीमद्भागवत की कथा और जन्माष्टमी अवसर पर भजन कीर्तन, उपदेश आदि सुनने को मिलतें है.

इस प्रकार वर्ष में एक बार पावन ऋतू में आकर यह श्री कृष्ण जन्माष्टमी हम सबके मन में सदाचार की स्थापना तथा अत्याचार-पापाचार के विनाश के लिए हम सभी को प्रेरित करता है.

जन्माष्टमी का महत्व

जिस तरह हिन्दू धर्म में हर त्यौहार और हर व्रत का महत्व होता है उसी तरह जन्माष्टमी का भी विशेष महत्व है. धरती से पाप, अत्याचार और हिंसा को मिटाने के लिए श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया था. जब कंस का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच चूका था तब कृष्ण जी ने उनका वध कर मानव जीवन और धर्म की रक्षा की थी.

जन्माष्टमी पर्व हमें सच्चाई, अहिंसा और धर्म के पालन करने का संदेश देता है. ये पर्व भगवन श्री कृष्ण के दिखाये गए पथ पर चलने और उनके आदर्शों का पालन कर मानवजाति के विकास के लिए अपना योगदान देने की तरफ हमें संदेश देता है.

यह त्यौहार हमें जहाँ एक और श्री कृष्ण के बाल रूप का स्मरण कराता है वहीँ दूसरी ओर अपना उचित अधिकार पाने के लिए कठोर संघर्ष और कर्म के महत्व की सिक्षा भी प्रदान करता है.

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता

बाजे ढोल मृदंग है देखो
बाजी है शहनाई,
बधाई हो बधाई
जन्मे हैं कृष्णा कन्हाई.
माता यशोदा गोद में लेकर
कान्हा का माथा चूमे
सारा गोकुल जश्न मनाता
सब भक्ति में झूमें,
बलराम के जीवन में आया
उसका है प्यारा भाई
बधाई हो बधाई
जन्मे हैं कृष्णा कन्हाई.
दर्शन पाने की खातिर
कितने ही लोग हैं आये
जो भी करे है दर्शन
उसका जन्म सफल हो जाये,
जन्म दिया है देवकी ने
पालेंगी यशोदा माई
बधाई हो बधाई
जन्मे है कृष्णा कन्हाई.
जब जब पाप बढ़ा है
जब भी बढ़ा है अत्याचार
तब-तब प्रभु ने मेरे
लिया है एक अवतार,
धरती माँ हुई प्रसन्न की
अब है कंस की मृत्यु आई
बधाई हो बधाई
जन्मे हैं कृष्णा कन्हाई.
यमुना हुई आनंदित
आनंदित हुई है सारी गैया
गोकुल में खेलने आया है
सारे जग का रचैया,
जब भी कोई विपदा आती
होता है वही सहाई
बधाई ही बधाई
जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई.
बाजे ढोल मृदंग है देखो
बाजी है शहनाई,
बधाई हो बधाई
जन्मे हैं कृष्णा कन्हाई.

जन्माष्टमी शायरी

“पलकें झुकें, और नमन हो जाये…
मस्तक झुके, और वंदन हो जाये…
ऐसी नज़र, कहाँ से लाऊं मेरे कन्हैया,
की आपको याद करूँ और आपके दर्शन हो जाए…”

“तू चाहे तो मेरा हर काम साकार हो जाये,
तेरी कृपा से खुशियों की बहार हो जाये,
यूँ तो कर्म मेरे भी कुछ ख़ास अच्छे नहीं
मगर तेरी नज़र पड़े तो मेरा उद्धार हो जाये.”

जन्माष्टमी के ऊपर शायरी

“माखन चुराकर जिसने खाया,
बंसी बजाकर जिसने नचाया,
खुसी मनाओ उनके जन्मदिन की,
जिन्होंने दुनिया को प्रेम का रास्ता दिखाया”’

“गोकुल में जो करे निवास,
गोपियों संग जो रचाये रास,
देवकी यशोदा जिनकी मैया,
ऐसे हमारे कृष्ण कन्हैया.”

श्री कृष्ण की याद में और उनके बाल रूप को पूजने के लिए यह पावन पर्व जन्माष्टमी मनाया जाता है. मुझे उम्मीद है की आपको जन्माष्टमी निबंध पसंद आया होगा.

इस लेख “जन्माष्टमी पर निबंध हिंदी में” से आपको कृष्ण जी की बाल कथा और जन्माष्टमी का महत्व अच्छे से समझ में आया होगा. इसे अपने बच्चों और ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ जरुर शेयर करें ताकि उन्हें भी जन्माष्टमी के पीछे की कहानी का ज्ञान मिल सके.

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मैं एक कहानी लेखिका हूँ, जो अपनी विचारधारा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने में विश्वास रखती हूँ। मेरी कहानियां जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं।

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