ऊर्जा की बढ़ती माँग पर निबंध

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आज हम उर्जा के विषय में बात करेंगे जिसमे ये जानेंगे की उर्जा होता क्या है और ऊर्जा की बढ़ती माँग इतनी बढ़ी हुई क्यों है. उर्जा के बारे में हम सभी जानते हैं क्योंकि इसका उपयोग हम अपने दैनिक कार्य में प्रतिदिन करते हैं.

हम जो भी कार्य करते हैं उसे पूरा करने के लिए हमे उर्जा की जरुरत होती है. हमें अपने शारीर के अन्दर के कार्य व शारीर द्वारा किये गए सभी कार्य के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है.

ऊर्जा केवल हमारे शारीर में ही नहीं बल्कि प्रकृति के हर एक चीज से ऊर्जा उत्पन्न होती है जैसे जल, वायु, सौर्य, भूमि, कोयला, धातु, खनिज पदार्थ, लकड़ी इत्यादि. इन चीजों से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका प्रयोग हम बिजली, वाहन का संचालन और घर में खाना बनाने के काम में इस्तेमाल करते हैं.

समय के साथ साथ देश के ऊर्जा की माँग बढती जा रही है. वर्तमान में ऊर्जा का ज्यादा उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है. ग्रामीण क्षेत्रों में उर्जा का उपयोग मुख्य रूप से खाना बनाने, प्रकाश की व्यवस्था करने और कृषि कार्य में किया जा रहा है.

ऊर्जा हमारे लिए बहुत ही जरुरी है इसलिए लोग ऊर्जा का उपयोग अपने फायेदे के लिए ज्यादा पैमाने पर कर रहे हैं जिससे ऊर्जा धीरे धीरे खत्म होने लगा है. हमें ऊर्जा का उपयोग उतनी ही मात्रा में करनी चाहिए जितना हमें जरुरत है, इससे ऊर्जा की बचत भी होगी और साथ ही ऊर्जा संरक्षण भी होगा.

ऊर्जा के बारे में और अधिक जानने के लिए और ऊर्जा का महत्व अपने बच्चों को बताने के लिए मैंने यहाँ भारत में ऊर्जा की समस्या प्रस्तुत किया है.

ऊर्जा की बढती मांग : समस्या और समाधान

urja ki badhti maang par nibandh

युगों युगों से मनुष्य निरंतर प्रगति के पथ पर चल रहा है. इस पथ पर चलने के लिए ऊर्जा को हम प्रगति की सीढ़ी कहे तो गलत नहीं होगा. जैसे जैसे मनुष्य प्रगति की सीढियाँ चढ़ता गया वैसे वैसे उसकी ऊर्जा की आवश्यकता बढती गई.

ऊर्जा हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता है फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो. भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, मनोरंजन इत्यादि चीजों में ऊर्जा का उपयोग हम करते हैं.

औद्योगिक दुनिया में कृषि, transportation, waste collection, information technology और communication के लिए ऊर्जा संसाधनों का विकास आवश्यक हो गया है जो एक विकसित समाज की जरुरत बन गए हैं.

ऊर्जा क्या है

ऊर्जा को सरल भाषा में कहें तो किसी भी वस्तु के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहा जाता है. मतलब ऊर्जा कोई वस्तु नहीं है, ना ही इसका कोई रंग या आकार होता है. ना तो हम इसे देख सकते हैं ना इसे छू सकते हैं.

ये अविनाशी है क्योंकि ना तो इसको किसी भी प्रकार से उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही किसी भी प्रकार से नष्ट किया जा सकता है. यह सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सकता है और एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है.

उदहारण के तौर पर ऊर्जा के एक रूप से दुसरे रूप में बदलने की बात को समझाउं तो, जैसे किसी ऊंचाई से निचे गिरते हुए पानी में ऊर्जा होती है और इसकी ऊर्जा को मानव अपने विभिन्न कामों में लाता है, जैसे इस पानी से बड़े बड़े टरबाइन घुमाये जाते हैं और बिजली पैदा की जाती है इस बिजली से फिर मोटर चले जाते हैं जो और भी अन्य कामो में इस्तेमाल किया जाता है.

ऊर्जा के स्त्रोत क्या है

ऊर्जा के विभिन्न स्त्रोत है: कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि. ऊर्जा कई रूप में हो सकती है जैसे ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा इत्यादि. इन सभी ऊर्जा का इस्तेमाल मनुष्य अपने कार्य को करने में लगाता है.

विभिन्न प्रकार के ईधनों में स्थितिज ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित रहती है जैसे- कोयले, पेट्रोल, मिट्टी का तेल इत्यादि जब इन्हें जलाया जाता है तब यह रासायनिक ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा व प्रकाश ऊजा में बदल जाती है. हम अपने घरों में विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर पंखें, लाइटें, टीवी चलाते हैं और ऊष्मीय ऊर्जा से खाना पकाते हैं.

प्रकृति में संसाधन सिमित है, उसी प्रकार प्रकृति में उपलब्ध उर्जा भी सिमित है. विश्व की बढती जनसंख्या के साथ आवश्यकताएं भी बढती ही जा रही है. मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता धीरे-धीरे बढती जा रही है.

दिन प्रतिदिन नई नई मशीने, गाड़ियाँ, हवाई जहाज, रेलगाड़ी इत्यादि चीजों में वृद्धि हो रही है. इन सभी मशीनों के कार्यरत को बनाये रखने के लिए किसी ना किसी प्रकार की ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो हमे प्रकृति से प्राप्त होती है.

हमारी ऊर्जा पर निर्भरता इस प्रकार बढ़ गयी की आने वाले समय में सभी ऊर्जा के संसाधन नष्ट होने की आशंका भी बढ़ने लगी है. ऊर्जा विकास की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही दृष्टिकोण से प्रभावित करता है.

इस क्रिया के दौरान पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन इस प्रभाव की तुलना में मानव के जीवन स्तर को उन्नत करने में ऊर्जा की भूमिका इतनि महत्वपूर्ण है की गेहरे प्रभावों के बाद भी मानव ऊर्जा की खपत बढाता ही चला जा रहा है इससे भविष्य में ऊर्जा समस्या उत्पन्न होने की पूरी संभावना है.

जितनी ऊर्जा का उपयोग तिन या चार हजार वर्षों में मानव समुदाय नहीं कर पाया था, उससे कई गुना आधुनिक समाज ने पिछले 100 वर्षों में किया है जिससे सिमित भंडार वाले स्त्रोतों जैसे कोयला, खनिज पदार्थ, पेट्रोलियम इत्यादि पर दबाव बढ़ता चला जा रहा है जो ऊर्जा संकट को जन्म दे रहा है.

जिस प्रकार जल, वायु तथा भोजन के अभाव से कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता उसी प्रकार बिना ऊर्जा के न तो कोई गतिमान हो सकता है और न ही उसकी चेतना विध्यमान रह सकती है. मानव समाज परंपरागत एवं गैर परंपरागत दोनों ही स्त्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करता है.

परंपरागत स्त्रोत वो हैं जिनके भंडार कभी ना कभी खत्म होने वाले हैं और जिनके पूर्ति निकट भविष्य में असंभव है जैसे कोयला, डीजल, पेट्रोल, परमाणु ऊर्जा, जल विद्युत इत्यादि.

गैर परंपरागत जिसे नवीकरण स्त्रोत भी कहते हैं, इनके उपयोग के बाद भी पुनः इनका उत्पादन किया जा सकता है जैसे पवन ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोगैस इत्यादि.

पुरे विश्व में भारी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है और मुख्य रूप से यह ऊर्जा हमें कोयला, गैस, पेट्रोलियम और न्यूक्लियर ईधन से प्राप्त होती है. इनका इतना ज्यादा दोहन हुआ है की उनके भण्डार तेज़ी से कम हो रहे हैं.

बिजली उत्पादन के लिए संसाधनों की जरूरत है. पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहे हैं. यह समय के साथ बहुत तेजी से घट रहा है क्योंकि उपयोग तेजी से बढ़ रहा है.

आवश्यकता के अनुरूप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है. बरसात कम होने की वजह से बड़े बड़े जलाशय और नदियाँ सूखती जा रही है. हमारे यहाँ उपलब्ध कोयला भी गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम नहीं है. इसका उत्खनन भी आवश्यकता के अनुरूप नहीं हो पा रहा है. ये सब ऊर्जा संकट से उत्पन्न समस्या है जो देश के विकास में बाधा बन रहा है.

औद्योगिक क्रांति के बाद से ऊर्जा का बढ़ता उपयोग अपने साथ कई गंभीर समस्याओं को भी लेकर आया है, जिनमें से कुछ, जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, संभावित रूप से दुनिया के लिए गंभीर जोखिम हैं.

कार्बन डाइऑक्साइड एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है जिसे ग्लोबल वार्मिंग में तेजी से वृद्धि के कुछ अंश के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

ऊर्जा की बढती माँग आने वाले वर्षों में आज से तिन या चार गुना अधिक होगी. एक अनुमान के अनुसार सं 2030 तक ऊर्जा की माँग वर्तमान की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक बढ़ जाएगी. इसलिए ऊर्जा संकट के उपाय ढूँढना बहुत जरुरी है.

ऊर्जा संकट का समाधान है “ऊर्जा संरक्षण” जिसका सीधा सीधा मतलब है ऊर्जा का बचाव. ऊर्जा संरक्षण से पैसा, वक्त और पर्यावरण सभी को बचाया जा सकता है. परंपरागत स्त्रोत के जगह गैर परंपरागत स्त्रोत का उपयोग करना बेहतरीन है.

सौर्य ऊर्जा वो है जो हमे सूर्य से प्राप्त होती है. यह हमारे लिए एक आकर्षक विकल्प है. सूर्य एक कभी ना समाप्त होने वाला ऊर्जा का स्त्रोत है. यह मुफ्त में उपलब्ध है जो साल के बारह मास मिलने वाली ऊर्जा का स्त्रोत है.

इसको सोलर सेल द्वारा विद्युत में परिवर्तित करने की तकनिकी अब हमारे देश में भी उपलब्ध है. इसमें सूरज की ऊर्जा और रौशनी से बिजली बनाई जाती है जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा संकट से निवारण मिला है.

बिजली बनाने के लिए सरकार द्वारा अब काफी बड़े बड़े सोलर प्लांट लगाये जा रहे हैं. बहुत से सोलर प्रोडक्ट्स मार्किट में भी आसानी से मिल रहे हैं जैसे सोलर पैनल, सोलर लाइट, सोलर चार्जर.

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पहले बिजली का नमो निशान तक नहीं था वहां भी अब सोलर पैनल लगाये जा रहे हैं और बिजली प्रदान की जा रही है. सौर ऊर्जा बहुत हद तक हमारी घरेलु और कृषि की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर सकती है.

पवन ऊर्जा भी बिजली बनाने में अहम् योगदान देती है. पवन ऊर्जा का उपयोग पानी की पंपिंग, बैटरी चार्जिंग और बड़े विद्युत उत्पादन में किया जाता है. यह एक सरल संकल्पना पर कार्य करता है- बहती हुई हवा एक टर्बाइन के पंखों को घुमाती है, जो एक जनरेटर में बिजली को उत्पन्न करते हैं.

बायोगैस कार्बनिक उत्पादों, प्राथमिक रूप से पशुओं के गोबर, रसोई के अपशिष्ट तथा पौधों के अपशिष्ट से बनायीं जा सकती है और उस गैस को बहुत से उपयोगी कामों में लाया जाता है. हम अपने घरों में खाना पकाने के लिए LPG गैस का उपयोग करते हैं, लेकिन ऊर्जा संरक्षण के लिए बायोगैस से बेहतर कोई विकल्प नहीं है. इसका उपयोग मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है. वर्त्तमान में भारत बायोगैस उत्पादन में दुसरे स्थान पर है.

घरों में हम प्रकाश के लिए पीले प्रकाश वाला बल्ब का इस्तेमाल करते हैं जो काफी बिजली की खपत करता है, तो इन बल्ब की जगह हमे LED बल्ब का ही इस्तेमाल करना चाहिए. इसके इस्तेमाल से हम 80 प्रतिशत बिजली की बचत कर सकते हैं. घरों में बेवजह पंखें और लाइटों को भी ना चलाएं.

ऊर्जा संरक्षण किसी एक व्यक्ति की बस की बात नहीं है इसमें सभी मनुष्य को अपना पूरा योगदान देना होगा तभी जा कर हम ऊर्जा की समस्या को दूर कर पाएंगे. भविष्य में निश्चित ही गैर परंपरागत स्त्रोतों से ऊर्जा संकट का निवारण हो सकता है, साथ ही ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा का उत्पादन है.

सरकार को आम जनता में ऊर्जा की बचत के प्रति जागरूकता पैदा करना अति आवश्यक है. मुझे उम्मीद है की आपको ये लेख ऊर्जा की बढती माँग पर निबंध  पसंद आएगा. इससे जुड़े कोई भी सुझाव आप देना चाहते हैं तो हमें निचे कमेंट करके जरुर बताइए और हो सके तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिये.

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मैं एक कथा लेखिका हूँ, जो अपनी विचारधारा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने में विश्वास रखती हूँ। मेरी कहानियां जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं।

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